Friday 15 November 2019

सुना था मेरा खुदा तो सिर्फ मिट्टी मे ही हैं
और वो तो सिर्फ मेरा ही हैं जो इस मिट्टी मे हैं
ना जाने कितनी सदिया वो मुझे देखकर बोले,
तु मुझे युं आपनाते क्यूँ नहीं?

अनगिनत ख़यालो में डूबा हुआ मैं,
कितने ख्वाब सजाता, संवरता हुआ मैं,
हाथ मैला करने से कतराता हुआ मै
और फिर कोई भले आदमी की बुलंदी भी क्या जो मिट्टी को आपनाएं, खुदा के वास्ते ही सही?

फिर खयाल आया कि अपनी मिट्टी ही तो हैं,
जो अविरत हैं, जो अपनी हैं...
तो सो चल पड़े हम चूमने उस समंदर को रेगिस्तान के जिसने कभी आसमां नहीं छूए।

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