सुना था मेरा खुदा तो सिर्फ मिट्टी मे ही हैं
और वो तो सिर्फ मेरा ही हैं जो इस मिट्टी मे हैं
ना जाने कितनी सदिया वो मुझे देखकर बोले,
तु मुझे युं आपनाते क्यूँ नहीं?
अनगिनत ख़यालो में डूबा हुआ मैं,
कितने ख्वाब सजाता, संवरता हुआ मैं,
हाथ मैला करने से कतराता हुआ मै
और फिर कोई भले आदमी की बुलंदी भी क्या जो मिट्टी को आपनाएं, खुदा के वास्ते ही सही?
फिर खयाल आया कि अपनी मिट्टी ही तो हैं,
जो अविरत हैं, जो अपनी हैं...
तो सो चल पड़े हम चूमने उस समंदर को रेगिस्तान के जिसने कभी आसमां नहीं छूए।
और वो तो सिर्फ मेरा ही हैं जो इस मिट्टी मे हैं
ना जाने कितनी सदिया वो मुझे देखकर बोले,
तु मुझे युं आपनाते क्यूँ नहीं?
अनगिनत ख़यालो में डूबा हुआ मैं,
कितने ख्वाब सजाता, संवरता हुआ मैं,
हाथ मैला करने से कतराता हुआ मै
और फिर कोई भले आदमी की बुलंदी भी क्या जो मिट्टी को आपनाएं, खुदा के वास्ते ही सही?
फिर खयाल आया कि अपनी मिट्टी ही तो हैं,
जो अविरत हैं, जो अपनी हैं...
तो सो चल पड़े हम चूमने उस समंदर को रेगिस्तान के जिसने कभी आसमां नहीं छूए।
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